22 March 2015

Khushiyaan...!!!


#Happinesstome  

वैसे देखा जाये तो ख़ुशी के कई रूप हैं कई रंग हैं।  हेर किसी के लिए ख़ुशी की अलग परिभाषा है।  जो पल मन को गुद - गुदा जाये वो ही ख़ुशी का माध्यम बन जाता है।  मेरे लिए ख़ुशी का न तो कोई निश्चित रंग है ना तो परिभाषा , ये तो बस एक एहसास है जो बस गुद -गुदा जाता है। 

जब चलना नहीं सीखा ,माँ ने उंगली थमी तो मुस्कुरा दिया
बाबा ने जा घोड़े की सवारी करायी तो भी मस्ती में  हंस पड़ी
भाई को जब भी चिढ़ाया तो भी मेरी ख़ुशी का अलग ही स्वाद था
दोस्तों की यारी  और बिन बात उनकी  बेहिसाब गली का भी स्वाद काफी चटकारा था
ज़नदगी  पन्नों को जब कभी भी पलटा तो खुशियों का एक अदभुत ही आनंद रहा
 यादों के  कुछ पन्नो को पलटा तो खुशियों की तिजोरी मिली , कुछ यादें अनछुई पड़ी थी
कच्चे - पके पगडंडियों से गुज़रते , कुछ खेतों में  मिलते, कुछ छुपन छुपाई के खेलों में भी दीखते,
मनो पिटारा खुल गया हो और मैं समेत रही हूँ कई यादों के गुलदस्ते।  अपनी झोली में संभाले उन्हें सहेज रही हूँ।  फिर जब बड़े हो चले तो class room की लुकचुप शरारत, बिन बात दोस्तों से झगड़ना फिर मानना ,  परिक्षा के  वो दिन ……हफ्ते दस दिन पहले पूरी ज़ोर - शोर की पढ़ाई फिर जैसे तैसे पास होजाना :) ;) अलग ही आनंद था। 
कभी लगता है ज़िन्दगी - अलग अलग फलों से भरी टोकरी सी है जिसमें छोटे-बड़े कई तरह के फल हैं ,जिसमें  छोटी - बड़ी हेर तरह की ख़ुशी के साथ ज़रूरी है।  बस हमे तय करना है किसे कब और कहाँ सजाया जाए।  तब जेक कहीं तैयार होगा.... गुलदस्ता ...!!! हाँ खुशियों का गुलदस्ता....!!!  
 मेरी खुशियों का गुलदस्ता कुछ यूँ तैयार हुआ -
मेरे बचपन का वो आंगन 
भीनी  यादों की वो खुशबू,,

अंगडाई  लेते हुए सपने 
थामे  ममता का वो दामन
कभी माँ की वो लोरी  
कभी यूँ ही मनाना 
जाके फिर रूठ जाना

कभी आखें यू मिची उन 
बदल में गूम हो जाना ,,,
तो कभी तारोंन को गिनना
चंदा मामा का आना और किस्सों का रुक जाना
खुले असमान को यू तकना
गिरते तारों को भी हो मनो लपकना 

 मेरे बचपन का वो आंगन
भीनी  यादों की वो खुशबू

वही रास्ता वही घर है
वही आंगन वही  चौबारा  
वही संध्या की है लाली 
वही सूरज का चमकना
वही चिड़ियों का चेहेकना 
मनो कल-परसों की कहानी
सब वही है और वहीँ है..
फिर भी कहीं बदली है मेरी कहानी ......

खूब याद है पढने  से जी चुराकर 
 रंग बिरंगे उन चित्रों की सैर ,, 
फिर कभी रंगों को समझना 
और उन चित्रों  को भरना 
काश रख पाती मैं गर इन रंगों की समझ 
न बदलती मेरी कहानी होती कुछ तो सेहेज

 मेरे बचपन का वो आंगन
भीनी यादों की वो खुशबू


जहाँ मैंने लड़खड़ा कर  कभी चलना था सिखा..
कभी गिर जो गयी तो फिर उठाना भी सिखा 
 सोचती हूँ खूब रोई भी होगी गिरी थी कभी जब 
फिर सोचती हूँ......!! न गिरती कभी गर उठ कहाँ पाती ज़मीं पर 
ज़िन्दगी रूकती कहाँ है ,ये कभी थकती कहाँ है
उठ खड़े  हुए जमीं पर तो क्या ..?
अब तो दौड़ना भी है बाकि ....

तब कहाँ  होगा मेरे बचपन का वो आंगन..
रह जाएगी  तो बस यादों की भीनी खुशबु .....!!!!!
 Thanks Coco-Cola India ...!!!


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